(स्वरचित)
श्रद्धांजलि
🙏🏼🙏🏼🙏🏼इंदौर की छवि और पहचान बहुत कारणों से है । स्वच्छ्ता सबसे प्रमुख है । 29 सितम्बर 1929 को इंदौर को एक संगीत सेवी थिएटर कर्मी के आंगन में एक लता खिली । आमतौर पर सूर्य की आभा जब किसी आम लता के पल्लवों पर पड़ती है ,उसे सोनजूही कहते है,पर दीनानाथ मंगेशकर जी की यह लता सुनहली नही सुरीली थी ।।
तेरह वर्ष की मासूम आयु में इस लता का बांगबान ,इसे छोड़ गया । साल 1942 का था ,भारत और इंदौर की यह लता ,स्वतंत्र ,आत्म निर्भरता के लिए संघर्ष कर रहे थे ।
लता के हृदय ( लता जी के भाई का नाम) से उपजी आशा (लता जी की बहन ) ने बॉलीवुड को संगीत का ऊषा पान करवाया(लता जी की बहन) ।।अंततः लता अब संगीत संसार की उभरती मीना(लता जी की बहन) थीं ,जिसकी चमक अब अपने प्रकर्ष पर थी ।।
इस लता को मोहन(संगीत निर्देशक मदन मोहन) का वरद हस्त प्राप्त हुआ और लता ने अपने सबसे खूबसूरत नगमे ,इस मास्टर मदन के निर्देशन में गाये ।
30 हज़ार गीत ,20 से अधिक भाषाओँ को लता के गले द्वारा हृदय तक उतरने का अवसर और सौभाग्य मिला ।
व्यक्तिगत जीवन मे इस लता को कोई वृक्ष न मिला जो इस बेल को सहारा देता , इस लता का परिवार सरगम ,स्वर ,साधना और वाद्य सहायक यंत्र ही थे ।
लता ने अपने 75वें वर्ष में वीर ज़ारा के लिए गीत गाया । इस आयु में कोई विलक्षण सिद्ध लता ही पुष्पित हो सकती है ।
हर घर यह लता महकी ,चहकी । इसके स्वर पुष्प युगों तक प्रखर चटक रंग में चमकेंगे । कोई भी स्वतंत्रता या गणतंत्र दिवस ,ऐ मेरे वतन के लोगों के भावुक भजन के बिना अधूरा रहेगा ।
अपने जीवन काल मे बहुत नायिकाओ को इस सरस्वती मानस पुत्री का आशीर्वाद प्राप्त हुआ । यह ऋण कभी नही चुकाया जा सकेगा ।।
न केवल संगीत की दुनिया के अपितु खेल ,मनोरंजन ,राजनीति ,सेना के जगत में अनगिनत उपासकों की यह मातृतुल्य देवीं थीं और रहेंगी ।
याद आता है ,ममता फ़िल्म का गीत ,जिसे मजरूह साहब ने लिखा था आज मानों लता जी की आवाज़ और अभिव्यक्ति प्रतीत हो रही है ।
जब हम न होंगे तब हमारी खाक पे तुम रुकोगे चलते चलते अश्कों से भीगी चांदनी में इक सदा सी सुनोगे चलते चलते वहीं पे कहीं, वहीं पे कहीं हम तुमसे मिलेंगे, बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में …
रहें ना रहें हम, महका करेंगे* …

