वो जो महफ़िल में सुनाते वफ़ा के किस्से
ऐसी क्या बात न जाने ख़फ़ा थे किस से
वो जो महफ़िल में सुनाते~~
नाम उनका लबों पर आने को ही था
झुकी पलकें ‘ओ’ क़रार होने को ही था
कई सदियों से जुदा थे तस्वीर के हिस्से
ऐसी क्या बात न जाने ख़फ़ा थे किस से
वो जो महफ़िल में सुनाते~~
आसमां सूना और ज़मीं गुम-सुम सी
फ़ासला इतना कि दूरी मीलों सी थी
वो जो संगदिल को लगाते सदा थे दिल से
ऐसी क्या बात न जाने ख़फ़ा थे किस से
वो जो महफ़िल में सुनाते~~
कौन जीता मुक़द्दर की बाज़ी यहाँ यारों
दिल जो टूटा ज़माने में कहें किससे यारों
वो जो औरों को मिलाते थे इससे-उससे
ऐसी क्या बात न जाने ख़फ़ा थे किस से
वो जो महफ़िल में सुनाते~~
ऐसी क्या चाह है जिसको मैं भुला न सका
ऐसी क्या दास्तां जग को मैं सुना न सका
चन्द पल में ही बने थे सदा-सदा के रिश्ते
ऐसी क्या बात न जाने ख़फ़ा थे किस से
वो जो महफ़िल में सुनाते~~
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