बादलों का चिलमन
चिलमन से छन कर आती चांदनी
ऐसा लगता है जैसे
घूंघट में छिप कर नज़रें मिलाती तुम
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मैंने — पिछली रात आसमान की सैर करते वक्त चूम लिया था चांद का माथा क्या…??
कि — सुना है शर्म से अगले रोज़ बादलों का ओढ़ के घूंघट बैठ गया छुप के महबूब से और ज़माने को दिखा ही नहीं
हां — उसने इक दफा पूछा था….;
बताओ तो…..क्या होता है शरमाना….??
सुनो — सुना है के बड़े हंसी हो तुम…..;
कब तलक देखोगे मुझे यूं पर्दानशीं होके….!
ज़रा सा सरका दो सर से ये दामन….;;
हम भी तो देख लें, तुम्हें फ़ना होके…..!!
